Friday, November 26, 2010

इश्क की इन्तहा !!! (ISHQ KI INTEHA)

सताना उनको भी कभी जायज़ ही होगा,
तडपाना उन्हें भी कभी, मुनासिब ही होगा,
दर्द होगा गर दिल मैं मेरे तो सह लुँगा ए दोस्त 
इसी बहाने से उन्हें हमारे दर्द का अहसास तो होगा 


ये भी मुमकिन नहीं, कि याद न किया जाये उनको,
मुनासिब ये भी नहीं कि जलाऊँ उन्हें, गैरों को याद कर-कर के,
उनके होंठों कि हंसी रहे कायम हरदम, 
दर्द उनका बहे मेरी आँखों से तो बेहतर ही होगा,

तो चलो आज हम भी इश्क कि इन्तहा कर दें,
नाम उसके अपनी ये ज़िन्दगी करदें, 
तमाम उम्र कट जाएगी, इश्क में तेरे ए हमदम, 
बाद मरने के मेरे कोई तो नाम अपनी जुबां पे लेगा 
सुर्यदीप "अंकित" - २५/११/२०१०

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